Fajihat shayari sangrah
मेरा मन दिल को फजीहत करने लगा है उस बेवफा से मोहब्बत करने की जरूरत क्या है अपनी वफादारी, उसके वादों इरादों के कशमकश में गमगीन माहौल रहने लगा है
फजीहत हद से ज्यादा किया हूं शर्म नहीं आई बेशर्म हो गई है आंसुओं के समंदर में जिंदगी डूबने लगी है यहां से निकलने का आसार दिखाई नहीं देता आज भी भरोसा नहीं होता है वह इतना बेरहम हो गई है